Posts

चलो कृष्ण अब चलो कृष्ण

बहुत देर से रुके हुए हो  चलो कृष्ण आज चलते हैं | बहुत कह लिया बेगानों से  चलो कृष्ण आज अपनों को सुनते हैं |  बहुत रह लिए किराये के घोंसलों में चलो कृष्ण आज दिल ढूँढ़ते हैं | बहुत शोर है यहाँ सब तरफ़  चलो कृष्ण आज अपने गीत गुनगुनाते हैं |  बहुत उम्मीद से लोग नाम लेते हैं चलो कृष्ण आज लिख ही देते हैं | बहुत बहुत हो लिया  चलो कृष्ण अब चलो कृष्ण !!!!  

दरवाज़े

दरवाज़ों पर लिखी हुई इबारते मिटा देना । मेरे कमरे में रखी हुई वह किताब हटा देना ॥ छुपा देना पैमाने, बुझा देना उन शामों को । मेरे जाने के बाद सब निशान मिटा देना दोस्तों ॥

चौदहवीं के चाँद सी, सागर के उफ़ान सी

चौदहवीं के चाँद सी, सागर के उफ़ान सी, ओस पर थिरकती थी, गुलाब सी महकती थी, एक परी घर में रहती थी। जाने किसने बहका दिया, क्या क्या किसीने कह दिया उसे लोहे का और मुझे मिट्टी का कर दिया ॥ दिल में बिठा कर बरसों, अरमानो से सहलाया था, चाँद तारों से आँचल को सजाया था, एक परी को साथ लाया था । जाने कौन उसे बहला गया, धूप में दौड़ा कर उसे लोहे का और मुझे मिट्टी का कर दिया ॥ उम्मीद है की वो नाहक दौड़ना छोड़, खुद को समझ पायेगी लोहे के कवच से निकल, मिट्टी में भी खिलखिलाएगी, वो सांझ जल्दी ही आएगी ॥ वो सांझ जल्दी ही आएगी॥

आज चाय में फिर चीनी नहीं है

आज चाय में फिर चीनी नहीं है , उफ़, ये दिन फिर से वहीं है। उड़ कर आ जाता है रोज़ ये दिन, रात भर सोता नहीं तारे गिन गिन। आज चाय में फिर चीनी नहीं है , अहा, थिरकती हुई उम्मीद, थमी नहीं है। बारिशों में भीगी, भाग कर आई गोदी में मेरी सिमट, ऐसे ही सोयी। आज चाय में फिर चीनी नहीं है , हश्श, मेले में रोशनी कहीं कहीं है। छन छन के आती रही चाँदनी , शहर आज गर्म नहीं है। आज चाय में चीनी सही है , उंह, ये मीठी फिर भी नहीं है। उठ रही है भाप बहुत देर से, चाय अब ठंडी नहीं है।

आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥

चंद सिक्के हाथ में लिए चला जाता हूँ आज  कुछ खुशिया खरीद लाता हूँ । सोच रहा हूँ बहुत रोज़ से तेरे बारे में आज कुछ देर दर पर दस्तक दिए आता हूँ ।  चंद अल्फ़ाज़ों को ही लिख़ लेता हूँ आज ये ख़त तुझे भेज देता हूँ । थामे  हुए बहुत वक़्त हो चला है आज ये पैमाने ख़ाली कर आता हूँ । चंद लोग दिखे दुनिया के मेले में आज उन लोगो से मिल आता हूँ । बैठा हूँ बहुत रोज़ से इंतज़ार में आज़ कुछ देर मैं भी सो जाता हूँ । चंद सिक्के ये बहुत  भारी हो चले हैं, कृष्ण अब तुम ही संभालो चंद अल्फ़ाज़ कंहा कुछ बयां कर पाएंगे, कृष्ण अब तुम ही कुछ कहो । इंतज़ार बहुत हो चुका, आयो कृष्ण अब चलते हैं कुछ नए ख़त तुम्हारी लेखनी से ही लिख लेते हैं । आगे मेले में बहुत भीड़ होगी, आयो कृष्ण अब चलते हैं कुछ नयी खुशियां रास्ते में ही बिखेर देते हैं । अायो कृष्ण अब चलते हैं । सिक्के, अल्फ़ाज़, मुलाकात बहुत हो गया । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥

तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।

आधी रात फिर उठ बैठा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर सिमट रहा हूँ मैं। किसने क्या क्यूँ कहा भूल रहा हूँ मैं।   तुझे याद कर फिर झूल रहा हूँ मैं।   अकेले ही सबसे मिल रहा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर खिल रहा हूँ मैं। सब कुछ जान कर भी अनजान बन रहा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर इन्सान बन रहा हूँ मैं। गलत औ सही के पार उस मैदान पर पहुंच गया हूँ  मैं। तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।

Key Take Away from Disrupting Digital Transformation - Gartner Webinar

Yesterday I happen to watch recording of Gartner webinar on Disrupting Digital Transformation by Andy Kyte facilitated by CastSoftware . The most wonderful piece as always is the final Q&A.   Couple of great take away from the webinar were: 1. Successful Project is one wherein all stakeholders are really really happy, it's NOT the one meeting the IRON Triangle (Scope, Cost, Schedule). 2. Agility is inversely proportional to Complexity - Do not confuse agility and velocity. 3. The rush to do rapid development without ruthless refactoring contributes to inflexible system and complexity. 4. AGILE fails when Ruthless refactoring and elimination of technical debt is not done.Technical debt is "stuff not implemented" like future maintainability that is making it sufficiently easy to change in future, single sign on etc. 5. "The Business" is not a single entity or a single value system or single thought process, in reality there are many demanding Stakeholde