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Showing posts from June, 2015

आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥

चंद सिक्के हाथ में लिए चला जाता हूँ आज  कुछ खुशिया खरीद लाता हूँ । सोच रहा हूँ बहुत रोज़ से तेरे बारे में आज कुछ देर दर पर दस्तक दिए आता हूँ ।  चंद अल्फ़ाज़ों को ही लिख़ लेता हूँ आज ये ख़त तुझे भेज देता हूँ । थामे  हुए बहुत वक़्त हो चला है आज ये पैमाने ख़ाली कर आता हूँ । चंद लोग दिखे दुनिया के मेले में आज उन लोगो से मिल आता हूँ । बैठा हूँ बहुत रोज़ से इंतज़ार में आज़ कुछ देर मैं भी सो जाता हूँ । चंद सिक्के ये बहुत  भारी हो चले हैं, कृष्ण अब तुम ही संभालो चंद अल्फ़ाज़ कंहा कुछ बयां कर पाएंगे, कृष्ण अब तुम ही कुछ कहो । इंतज़ार बहुत हो चुका, आयो कृष्ण अब चलते हैं कुछ नए ख़त तुम्हारी लेखनी से ही लिख लेते हैं । आगे मेले में बहुत भीड़ होगी, आयो कृष्ण अब चलते हैं कुछ नयी खुशियां रास्ते में ही बिखेर देते हैं । अायो कृष्ण अब चलते हैं । सिक्के, अल्फ़ाज़, मुलाकात बहुत हो गया । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥

तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।

आधी रात फिर उठ बैठा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर सिमट रहा हूँ मैं। किसने क्या क्यूँ कहा भूल रहा हूँ मैं।   तुझे याद कर फिर झूल रहा हूँ मैं।   अकेले ही सबसे मिल रहा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर खिल रहा हूँ मैं। सब कुछ जान कर भी अनजान बन रहा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर इन्सान बन रहा हूँ मैं। गलत औ सही के पार उस मैदान पर पहुंच गया हूँ  मैं। तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं। तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।